शेर
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चहरा छुपा रहे हो। आंखे छुपा रहे हो। बातें छुपा रहे हो। जनाब सब ठीक तो है।
क्या क्या छुपा रहे हो।
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ये शाम का ढलना भी कुछ अजीब ही है इसके ढलते ही हर कोई महखाने की तरफ जाता है।
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इतने अरसे से तुम्हारे मूह से कोई बात नही आई। जब बात आई उसमे भी हमारी बात नहीं
आई। इससे भला बड़ा दुख क्या होगा। की जिन्दगी मिली किसी भी काम ना आई।
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ये हवा आई बरसात ना आई। किसी का दिन ढला पर रात ना आई। कोई बोलता रहा किसी को
बात ना आई। कोई यादों में तड़पा। किसी को याद ना आई।
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जा किस्सा अधुरा लिखदे। जा खुद को तू पूरा लिखदे। जा भरले घूट खुशियों के। जा
गमों को तू मेरा लिखदे।
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बातें सब पूछी कमभक्त। बस एक बात पूछना भुल गए। हम जल्दी जल्दी में तुम्हारा
नाम पूछना भुल गए।
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बात अगर हो तेरी ये होठ लगाम भूल जाते है। बात जो किसी की तो हमने कर कर ना
देखी। हमने देखी लड़किया बहुत पर तेरे जैसी ना देखी।
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गम मिटाने को शराब साथ रखता हु। मैं अपने साथ हर आदत खराब रखता हु।
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सोच रहें थे की वो भूल गए होंगे हमे।
और देखो हमारी सोच हकीकत हुई।
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बेहया, बेरहम कोई कैसे हो सकता
है।
तुझसे मिल कर सीखा हमने। तुझसे मिलकर ख़बर हुईं।
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सोचते है होकर देखें खफा एक बार सही।
फिर खयाल आता है कही गवा ना ले
तुम्हे।
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