ज़िंदगी के इम्तहानो से गुजरे है हम। कोन कब कहा बदलता है सब सीखे है हम। सीखे है दस्तूर इस ज़िंदगी का की जो दिखता है वो ही बिकता है। इसी लिए कुछ पाने के लिए बहुत बार उजड़े है हम।
मुस्कराते चहरे भी बहुत कुछ छुपा लेते है जैसे समुद्र दरियाओं को अपने अंदर मिला लेते है है कुछ खुश रहते है खुदा की रजा में। कुछ दूसरो को देख अपनी हस्ती मिटा लेते है। हमने देखा है बनके इस दूनिया सा इन्हें पैसे में हर खुशी दिखती हैं। ज़िंदगी भी अपनी अलग किताब लिखती है ।
दरिया की तरह अंशु हमने बेहिसाब बहाए है। वक्त पर हमने सब आजमाए हैं। सोचा था जिनको अपना खुदा कसम उनी ने जख्मों पर नमक लगाए है। अब आस ना रही किसी से मेरी कलम खुद को ही अपना लिखती है। ज़िंदगी भी अपनी अलग किताब लिखती है ।
सांसों की डोर टूटने लगी है। हमसे हर खुशी छूटने लगी है। किताबे खोली अपनो की तो पता चला। हमारी खुशी से उनकी खुशी रूठने लगी है। अब तो आलम कुछ यूं है कि खुशी भी हमारे हिस्से गमों की बौछार लिखती है। ज़िंदगी भी अपनी अलग किताब लिखती है ।
लिखा बहुत। लिख कर सब कुछ मिटा दिया। हमने अपनी खुशियों की किताब को अपने हाथो जला दिया। कैसे लगता है जल कर जिंदा हमसे पूछो जिसने अपने हाथो ही अपना बसा हुआ घर जला दिया। अब न पूछो हमसे यहां क्या क्या बिकता है। यहां जिस्म से लेकर रूह तक बिकती है। ज़िंदगी भी अपनी अलग किताब लिखती है ।
"हम ज़िंदगी जी रहे है या काट रहे है।
हम अपने हिस्से के दुख खुद से ही बांट रहे है।
चाहते है हम जिसे अपना बनाना
वो अपना प्यार हमारे दुश्मनों में बांट रहे है।"
WRRITTEN BY:- KESHAV SHARMA
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