कोई कब, कहा, क्यों, चला जाता है।
गमों से फरिक होंगे एक दिन। हमारा ये सोचना ही हमारा एक और गम बड़ा जाता है।
कैसे ईजाद करते है ये लोग ऐसे खयाल। उजड़े कोई हमे क्या हमारा क्या जाता है।
हूनर एक ये भी सीखना है हमे ए केशव। कैसे कोई रोते हुए भी मुस्कुराता है।
कुछ समय आपकी यादों और बातों में खत्म कर देते है हम। और बाकी समय हमारा दफ्तर खा जाता है।
जाता है दिल हर रोज सफर में नए दोस्त की तलाश में। पर दोस्त की जगह हर बार दुश्मन बना लाता है।
कभी कभी फोन कर लिया करो हमे भी। आपका जाए ना जाएं कुछ। हमे चैन मिल जाता है।
जानवर समझ लेते है इंसान को आज कल। पता नही क्यों इंसान को इंसान समझ नहीं पाता है।
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