शराब साथ रखता हु।
गम मिटाने को शराब साथ रखता हु।
मैं अपने साथ हर आदत खराब रखता हु।
महफिल सजने की ताक नहीं करनी मुझे।
मैं अपनी बोतल अपने साथ रखता हु।
गमों का छूना हमे गमों का ख्वाब है।
मैं हरदम दवा-ए-गम सीने से लगाकर रखता हूं।
जो मसीहा दे गया ये दवा इस दुनिया को।
मैं उस मसीहा की दिल में जगह रखता हु।
बात बात पर नाराज होना हमारी सक्सियत में नहीं।
मैं जिस से नाराज होता हूं उससे दूरी बनाकर रखता हु।
बिछड़ने की पहल ना करता हु कभी।
बिछड़ने की नियत वालो से खुद को दूर रखता हूं।
मैं आज की बात को कल नहीं दोहराता।
मैं दिल दुखाने वाली बातों को जुबां से दूर रखता हु।
जमाना चाहे हमे या नहीं कोई गम नहीं।
मगर वो चाहे जिससे मैं चाहने की चाह रखता हु।
इस दुनिया का एक रूप बनावटी और एक फरेब हैं।
मैं इस झूठी दुनिया से खुद को दूर रखता हूं।
बदन की भूख हर किसी को तबाह करती है
मैं इस भूख को अपने काबू में रखता हु।
शर्मिंदगी से जीने से अच्छा तो ना जीना अच्छा।
मैं इस शर्मिंदगी भरे कामों को खुद से दूर रखता हु।
कभी कोई पूछ ले वक्त कैसा चल रहा है।
मैं हर वक्त बाजू पर घड़ी बांधे रखता हु।
तुम प्यार के चंगुल में आकर बर्बाद करते रहो खुद को
मैं प्यार व्यार का नाटक अपनी पसंद से बाहर रखता हु।
है एक से मोहब्बत कहूंगा मैं भी उसे कभी।
ऐसा कहने के लिए मैं वक्त पर नजर रखता हु।
मरने से पहले भी मरने की कोई कला होती है।
अगर है वो मोहब्बत मैं उसे सीखने को कला रखता हूं।
तुम भूल गए। मैं याद रखता हु।
मैं अपने पल पल का हिसाब रखता हु।
जितने आंसू की वजह आप हो लुटाऊंगा सूत समेत।
ना मैं किसी का उधार रखता हु।
दर्द, जख्म, तन्हाई, वक्त, ये कुछ दोस्त साथ रखता हु।
मैं झूठा हूं थोड़ा बहोत। पर किरदार सच्चा रखता हु।
तुम थे किसी के साथ हमारे होते भी। तुम थे ख्यालों में किसी और के साथ हमारे सोते भी। तुमने जागना सीखा दिया। अब आंखें खुली रखता हु।
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WRITTEN BY:- KESHAV SHARMA (kanha)
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