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मेरी कहानी



मेरी कहानी

 

मेरी जिंदगी के बस कुछ ही है अंतरे।

इनमे सब लिखा है कब किसी ने मुझपर जुल्म करे।

किसने डाली रोटी किसने छीना है निवालों को।

किसने थामा हाथ किसने हाथो से सितम करे।


मेरी है कहानी इसे कहानी ना तुम समझना।

थोड़ी है पुरानी पर बुनी बनाई ना समझना।

छोटी सी इन आंखों से आंसू गिरे बहुत है।

थे वो खरा पानी पर उसे पानी ना तुम समझना।

 

जिन हाथो में होने चाइए खिलोने थे। 

जिन होटों पर होनी चाइए मुस्काने थी।

उन हाथो ने धोए है चाय के कप कई।

उन होटों ने छुपाई है आवाजे चिलाने की।

  

एक मैं, दो बहने, एक लाचार मेरी मां भी थी।

जिसकी हर सुबह भी काली रात भी खराब थी।

बहनों का रोना मुझे हर वक्त रुलाता था।

जब उनका जिस्म मेरे पिता की मार खाता था।

 

अपनो का था साथ कैसा इस पर भी गौर करो।

होती थी जो घर लड़ाई वो कहते थे ना शोर करो।

पीटते देख मेरी मां को दरवाजे बंद वो कर लेते

थे।

मैं कहता था मेरी मां को इन दुखो से कहो बस

करो।

 

बहुत करी थी कोशिश की मां के दुख मिटा दूं मैं।

किसी ना किसी तरह पिता को मिटा दूं मैं।

पर मैं करू भी क्या मैं भी तो लाचार था।

छोटा था मैं कद में भी और अकल का भी नादान था।

 

रातों को जागे है दिन में रोटी को हम तरसे है।

दुखो के बदल जो बरसे हमारे घर ही बरसे है।

पीने के लिए अंशु मिले खाने को है बस मार मिली।

पैरो में पड़े थे छाले जूतों को पैर बड़े तरसे

है।

 

जो लिखने बैठा जिंदगी तो जिंदगी लग जायेगी।

चैन से जिऊंगा कब कब घड़ी वो आयेगी।

कब कहूंगा मैं मुझे जिंदगी तुझ पर नाज है।

तू मेरे लिए पहले सब तेरे से बाद है।मेरी कहानी

 

मेरी जिंदगी के बस कुछ ही है अंतरे।

इनमे सब लिखा है कब किसी ने मुझपर जुल्म करे।

किसने डाली रोटी किसने छीना है निवालों को।

किसने थामा हाथ किसने हाथो से सितम करे।

 

मेरी है कहानी इसे कहानी ना तुम समझना।

थोड़ी है पुरानी पर बुनी बनाई ना समझना।

छोटी सी इन आंखों से आंसू गिरे बहुत है।

थे वो खरा पानी पर उसे पानी ना तुम समझना।

 

जिन हाथो में होने चाइए खिलोने थे।

जिन होटों पर होनी चाइए मुस्काने थी।

उन हाथो ने धोए है चाय के कप कई।

उन होटों ने छुपाई है आवाजे चिलाने की।

 

 

एक मैं, दो बहने, एक लाचार मेरी मां भी थी।

जिसकी हर सुबह भी काली रात भी खराब थी।

बहनों का रोना मुझे हर वक्त रुलाता था।

जब उनका जिस्म मेरे पिता की मार खाता था।

 

अपनो का था साथ कैसा इस पर भी गौर करो।

होती थी जो घर लड़ाई वो कहते थे ना शोर करो।

पीटते देख मेरी मां को दरवाजे बंद वो कर लेते

थे।

मैं कहता था मेरी मां को इन दुखो से कहो बस

करो।

 

बहुत करी थी कोशिश की मां के दुख मिटा दूं मैं।

किसी ना किसी तरह पिता को मिटा दूं मैं।

पर मैं करू भी क्या मैं भी तो लाचार था।

छोटा था मैं कद में भी और अकल का भी नादान था।

 

रातों को जागे है दिन में रोटी को हम तरसे है।

दुखो के बदल जो बरसे हमारे घर ही बरसे है।

पीने के लिए अंशु मिले खाने को है बस मार मिली।

पैरो में पड़े थे छाले जूतों को पैर बड़े तरसे

है।

 

जो लिखने बैठा जिंदगी तो जिंदगी लग जायेगी।

चैन से जिऊंगा कब कब घड़ी वो आयेगी।

कब कहूंगा मैं मुझे जिंदगी तुझ पर नाज है।

तू मेरे लिए पहले सब तेरे से बाद है।


THANKS FOR READING

WRITTEN BY:- KESHAV SHARMA (kanha)

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