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क्यों इतनी बेकदारी हो रही है मेरी।


Hindi Poetry
क्यों इतनी बेकदारी हो रही है मेरी।

क्यों इतनी बेकदारी हो रही है मेरी।

लगता है मरने की तैयारी हो रही है मेरी।


सकूं का मौसम गए को जमाना हो गया।

शायद अब गम की रुत हो रही है मेरी।


कितना अजीज था हर गया लम्हा मुझे कभी।

अब तो गए लम्हे को याद करना मजबूरी हो गई है मेरी।


जिस दिल को घर अपने बनाए था कभी ए दोस्त।

आज वहा गमों से मुलाकात हो रही है मेरी।


अंशु बहाना सिखाया किसी ने चुप होना सिखाए कोई।

हर पल हर लम्हा रोने की आदत हो गई है मेरी।


तुमसे मिल कर ही तो जीना जाना था हमने।

अब हर लम्हा मौत की आरजू हो रही है मेरी।


THANKS FOR READING

WRITTEN BY:- KESHAV SHARMA (kanha)



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