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O Insaan Tu Kis Baat Par Itrata Hai.

Poetry


ओ इंसान तू किस बात पर इतराता है।


ओ इंसान तू किस बात पर इतराता है।

तू खाक है खाक पर इतराता है।


आज यहां कल कही और होगा।

किस घर किस दर पर इतराता है


तेरी सोच ही डूबा देगी तेरी हस्ती।

किस सोच किस ख्वाब पर इतराता है।


तू किस गली छोड़ आए सांसों की दौलत।

किस जिंदगी किस दौलत पर इतराता है।


तेरे अपने ही मिटा देंगे तेरी हस्ती एक दिन।

तू किस अपने किस रिश्तेदार पर इतराता है।


इतिहास गवा है दोस्तो ने पीट मे चाकू मारा है।

तू किस दोस्त की दोस्ती पर इतराता है।


THANKS FOR READING

WRITTEN BY:- KESHAV SHARMA (kanha)

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