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Yaha Kya Kar Rha Hu Main.

Hindi Poetry


यहां क्या कर रहा हूं मैं।


यहां क्या कर रहा हूं मैं।

मौत का इन्तजार कर रहा हु मैं।


मर जानें की चाहत लेकर बैठा हु।

दुआ कबूल होने का इंतजार कर रहा हु मैं।


किस किस बात का शिकवा करू मैं।

हर बात पर गुनाह कर रहा हूं मैं।


दोस्ती के नाम पर तमाचा हु मैं।

रिश्तों को खाक बना रहा हु मैं।


एक भी रिश्ता संभाल नहीं पाया मैं।

और बात वक्त संभालने की कर रहा हु मैं।


यूं तो सबको सीखता हु की खुदा क्या है।

और खुद बा खुद नास्तिक बन रहा हु मैं।


अब जी पाऊंगा या नहीं इस दुनिया में।

खुद से हर बार ये सवाल कर रहा हु मैं।


के अब मौत आ जाए तो भला हो मेरा।

तबाह खुद को करने की साजिशे रच रहा हु मैं।


एक पर्दा डाल बैठा था अपनी गलती पर।

जिसके बदले खुद को बर्बाद कर के आ रहा हु मैं।


कुछ पलों की खुशी के खातिर मैं।

जिंदगी भर का सुख चैन गवा कर आ रहा हु।


जिन नजरो को इन्तजार रहता था मेरा।

अब उन्हीं नजरो में चुबता जा रहा हु मैं।


जो हाथ कभी दुआओं के लिए उठे मेरी।

आज उन्ही को काट कर आ रहा हु मैं।


होश में था, सब होश में किया मेने।

फिर किस बात का अफसोस कर रहा हु मैं।


क्या सफाइयां, क्या दलीलें, क्या कसूर केशव।

सब खबर है मुझे कहा किसी बात से मुकर रहा हु मैं।


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