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मैं नाम छुपाऊ। पहचान कैसे छुपाऊ।

Poetry || Poetry In Hindi || Sad Poetry || Sad Poetry In Urdu ||



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मैं नाम छुपाऊ। पहचान कैसे छुपाऊ।


मैं नाम छुपाऊ। पहचान कैसे छुपाऊ।

कोई बताए जरा। ये चहरा कैसे छुपाऊ।


वो रात छुपाऊ। हर बात छुपाऊ।

पर उस रात किये गुनाह कैसे छुपाऊ।


इन बारिशों का भी कहना है मुझसे।

की मैं आंसू छुपाऊ। जज्बात कैसे छुपाऊ।


उस रात की हर बात का गुनेहगार हूं मैं।

मैं हवस छुपाऊ अपनी। हयवानियत कैसे छुपाऊ।


इन कपड़ो को तो बदल लेता हु अच्छा दिखने को।

पर अपनी मुफलिशी। अपनी औकात कैसे छुपाऊ।


सोच समझ कर गलती कर बैठा हु मैं।

मैं लाख छुपाऊ। पर असलियत कैसे छुपाऊ।


डरता हु जब कभी रूबरू होऊंगा उनसे।

तो आंख छुपाऊ। या खुद को छुपाऊ।


मुझे मिले मौत हो मेरी दुआ कबूल खुदा।

मैं जिन्दगी गुवाऊ। जिमेदारिया कहा छुपाऊ।


किसी तरह तो वो वक्त लौट आए खुदा।

मैं खुद को सबसे छुपाऊ। पर खुद से कैसे छुपाऊ।


शर्म से झुक जाती है आँखें शीशे के आगे।

मैं खुद को मिटाऊ। तो कैसे मिताऊ।


रातों को भी सोने नही देता ये दर्द मुझे।

कोई तो दावा बताओ। ये रोग कैसे मिटाऊ।


कितने दिल तोड़े है मेने मेरे मौला।

मैं जख्म अपना भुलाऊ। पर उनका कैसे भुलाऊ।


कोई कर दे इंतजाम ऐसा ए केशव।

जब जाऊ एक बार। लौट के ना आऊ।

 

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