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मैं अपना घर जला कर आया हु।

Hindi Poetry


मैं अपना घर जला कर आया हु।


मैं एक कारनामा करके आया हु।

मैं अपना घर जला कर आया हु।


एक रिश्ता तबाह किया मेने।

एक रिश्ते को शरमसार करके आया हु।


मेने राख किया एक मां का प्यार। 

एक बाप की इज्जत राख करके आया हु।


मेने काट दी दोनो बाहें अपनी।

एक बहन का विश्वास तोड़ कर आया हु।


मिला था कोई मुझ बदनसीब को भी।

मैं अपने नसीब से हाथ छुड़ाकर आया हु।


जिस आंगन खेलती थी खुशियां कभी।

मैं उस आंगन को शमशान बना कर आया हु।


लोग वकत लगा देते है वक्त अच्छा लाने में।

मैं अपने अच्छे वक्त को ठोकर मार कर आया हु।


मेरी नाव डगमगा गई है इस जिन्दगी की।

मैं अपने मलह को पीछे छोड़ कर आया हु।


ये हश्र हुआ मेरे इस गुनाह का केशव।

की मैं अपनी कब्र अपनी हाथो खोद कर आया हु।


हर दरगाह हर दर से एक ही दुआ मांगी मेने।

दुआ में मैं अपनी मौत मांग कर आया हु।


हम तो ना चैन से जी सके ना ही मर सके।

मरू कैसे दो जिमेदारियो को निभा रहा हु।


एक हवस ने मुझे कही का ना छोड़ा।

मैं आग में खुद को जला कर आ रहा हु।


भाई भाई का रिश्ता। भाई बहन का रिश्ता।

मां बेटे का रिश्ता। बाप बेटे का रिश्ता। क्या होता है।

मैं इन रिश्तों को दाग लगा कर आ रहा हु।


नीच कैसे होते है मेरे जैसे होते है।

मैं नीचता की हदे पार करके आ रहा हु।


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