कोई कब, कहा, क्यों, चला जाता है।
तुमसे मिल कर जाना हमने आदमी तो कभी कभी खुदा बन जाता है।
ये शाम का ढलना भी कुछ अजीब ही है इसके ढलते ही हर कोई महखाने की तरफ जाता है।
तुमसे मिलेंगे फिर कभी ए दोस्त। अभी हमे हमारा रकीब चाय पर बुलाता है।
जबसे छोड़ चले अपने घर और अपनो को। तबसे अजनबियों में बड़ा मजा आता है।
हुनर -ए -जिन्दगी से ये मालूम पड़ा। की कोई किसी को काम आने पर ही याद आता है।
जलना नसीब सूरज और चिरागों का है। पता नही यह आदमी क्यों जल जाता है।
कभी बात करो इन पंछियों से, इन हवाओं से। वैसे भी अपनो के साथ बिताया वक्त खराब ही जाता है।
दिल से पूछ ही बैठे एक दिन नशे में। की तू उसे चाहता है या भूलना चाहता है।
TO BE CONTINUED.................
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