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हम तो छोड़ आए शहर तुम्हारा PART 2



हम तो छोड़ आए शहर तुम्हारा।


कब ले जाए तेरी यादों का समुंदर हमारा घर बहा कर। दरिया किनारे ही हमारा घर लगता है।


भगादो इन उदासी भरी हवाओं को कही होर। हमे तेरी यादों के चिरागों को जलाने में वक्त लगता है।


कितने दिन हो गए ए केशव। वो आया नहीं। बता देना हमे अगर उसके आने का कुछ पता चलता है।


कैसा लगता है इन पेड़ों को अपने पत्तो से बिछड़ कर। उनसे पूछो जिनका कोई कही गया लगता है।


इस समुंदर से भी पूछ ही लो इसे किस बात का गम है। क्यों ये पानी से इतनी जगह भरता है।


इस बात को मन से लगाए बैठे है। उनका दिल कैसे लगता है हमारे बिन। हमारे तो एक पल भी नहीं लगता है।


निकाल फेंको इस दिल को मेरे जिस्म से कही। जो सांस लेता रहे ऐसा कोई यंत्र नहीं लगता है।


हमको नहीं चाइए मेहबूब चांद सा। क्या करेंगे चांद का जब इसको भी गरेहन लगता है।


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