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कोई कब, कहा, क्यों, चला जाता है। PART 2

 


कोई कब, कहा, क्यों, चला जाता है।


सवाल कर बैठे बातो बातो में मुझसे ये पेड़। तुम्हे हमको जलने में क्या मजा आता है। 


जब है गरूर-ए-गुमान इंसान को इंसान होने पर। फिर क्यों ये इंसान जिस्म को देखते ही कुत्ता बन जाता है। 


चाट लेते है तलवे हवस में और पैसे के लिए। तब क्यों किसी का जमीर मर जाता है। 


जितना भी चाह लो किसी भी चीज को। एक ना एक दिन जी भर ही जाता है।


मुस्कान झूठी हो भी सकती है पता होते भी। क्यों कोई उसके अंशु पड़ नहीं पाता है। 


किसी को रुलाना अच्छी बात नहीं। क्यों फिर भी कोई रूलाता है और रुलाकर चला जाता है।


सफर -ए -मंजिल में बहुत मिलते है ठेले हमे। खरीदता कोई कुछ भी नहीं उनसे और रास्ता पूछ जाता है। 


कभी वक्त होगा तो पूछूंगा वक्त से। की क्यो कोई किसी के लिए वक्त निकाल क्यो नही पाता है।


TO BE CONTINUED...........



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