कौन कहता है अकेले बैठे है।
कौन कहता है अकेले बैठे है। हम बैठे है, ये वक्त बैठा है साथ में तेरी याद लिए बैठे है।
बाते हो रही है बस एक तेरी। हर बातों में तेरी बात लिए बैठे है।
खो गई है निंदे इन आंखो से शायद। इन आंखो में बस तेरी तस्वीर लिए बैठे है।
अपने खयालों में हम ये खयाल लिए बैठे है। की वो अपने खयालों में किसका खयाल लिए बैठे है।
मुस्कुरा रहे है इन दर्द के लम्हों में भी ये होठ। ये कैसा हुनर लिए बैठे है।
तुम्हारे शक की कोई दवा ना मिली। और दवा इसकी भी नहीं रोग जो हम लिए बैठे है।
इन चिरागों की लो को थोड़ा बड़ा दीजिए जनाब। हम कहीं अपना चांद खो बैठे है।
ये अंशु तक चूम रहे है होठ तुम्हारे। एक हम ये अधुरा ख्वाब लिए बैठे है।
किस काम के रह गए तुम और तुम्हारी शायरी। जब वो होठों पर किसी और का कलाम लिए बैठे है।
कहा मर गया ये नशा ए केशव। बस हाथ में खाली जाम लिए बैठे है।
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